मोतीझील लॉन में संपन्न हुई श्रीमद् भागवत कथा का भव्य समापन
– पांडाल में देखने को मिली भक्तों की आस्था झमाझम भरे पानी में भक्तों ने खड़े होकर सुनी कथा, भागवत जी की विदाई पर हजारों भक्तों की आंख हुई नम

समय व्यूज/अरुण जोशी

कानपुर में पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में आयोजित श्रीमद भागवत कथा का समापन दिवस पर कथा में पूज्य महाराज श्री ने गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौमाता का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। गौमाता में 33 करोड़ कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है। गोपाष्टमी के दिन गौमाता की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कथा में  पूज्य महाराज श्री ने कार्यकर्ताओं को कंबल वितरण किया और सभी को प्रेरित किया कि वे अपने समाज में सेवा कार्यों को निरंतर जारी

रखें। सेवा भाव ही जीवन को सार्थक बनाता है। भारत जैसे पवित्र देश में, जहाँ गाय को माता कहा जाता है, वहीं सबसे अधिक मांस गौ माता का ही बिकता है। उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा कि गाय की हत्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह हमारे धर्म, हमारी संस्कृति और हमारी मानवता के विरुद्ध है। उन्होंने समाज से आह्वान किया कि हर व्यक्ति गाय की रक्षा के लिए आगे आए। सनातन धर्म की रक्षा के लिए सनातन बोर्ड का निर्माण होना चाहिए। यह बोर्ड सनातन धर्म, संस्कृति, और संस्कारों की रक्षा करेगा। मथुरा मे भगवान श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर बनना चाहिए, जो सनातन आस्था और अखंड भारत का प्रतीक बने, जब हम सच्चे मन से धर्म का पालन करेंगे, तभी भारत एक सशक्त हिंदू राष्ट्र के रूप में उभर सकेगा। धर्म का पालन करना केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें सत्य, करुणा, निष्ठा और सेवा का भाव होना आवश्यक है। धर्म की रक्षा के लिए हर व्यक्ति को अपने जीवन में धार्मिकता को अपनाना चाहिए, क्योंकि धर्म से ही समाज और राष्ट्र की आत्मा जीवित रहती है। जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है और धर्म कमजोर होता है, तब-तब भगवान स्वयं इस सृष्टि में अवतरित होते हैं। भगवान का आगमन हमेशा धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए होता है। इसलिए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धर्म की रक्षा केवल भगवान का कार्य नहीं, बल्कि हर भक्त का भी कर्तव्य है। हमारे द्वार पर आने वाला हर व्यक्ति भगवान का अंश होता है। इसलिए हमें उसके प्रति प्रेम, आदर और सेवा का भाव रखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो व्यक्ति शरण में आए, उसका त्याग नहीं करना चाहिए,क्योंकि सच्चा धर्म वही है जो दीन-दुखियों की सेवा में प्रकट होता है।




 
                                    